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पटना

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पटना,पटना का इतिहास और परंपरा सभ्यता की शुरुआत से ही आरम्भ होती है | पटना का पुराना नाम पाटलिपुत्र या पाटलीपट्टन था जो 600 ईसा पूर्व इतिहास में पाया गया | पटना का नाम समय के साथ परिवर्तित होकर पाटलिग्राम, कुसुमपुर, अजीमाबाद और आधुनिक दौर में पटना नाम से जाना जाता है | चंद्रगुप्त मौर्य ने 4वी. ईसा में यहाँ अपनी राजधानी बनाई | इसके बाद इस नगर का महत्त्व कम होता गया और 16वी ईसा में इसे फिर पहचान मिली जब शेरशाह सूरी का शासन आया | एक अन्य मान्यता के अनुसार पट्टन नाम के एक ग्राम से आज का पटना का जन्म हुआ | कहा जाता है कि आजादशत्रु ने पाटलिपुत्र बनाई | प्राचीन ग्राम पाटली के साथ पट्टन जुड़ कर पाटलिपुत्र बना | ग्रीक इतिहास में पाटलीबोथरा शब्द आता है जो शायद पाटलिपुत्र ही था | आजादशत्रु ने इस नगर के लिय कई सुरक्षा इन्तेजाम कराया ताकि लिक्छवियों के लगातार आक्रमण से इसे बचाया जा सके | उसने पाया की यह नगर तीन दिशाओ से नदियों से घिरा था जो इसे नदियों के किला की सुरक्षा प्रदान करती थी | आजादशत्रु का पुत्र अपनी राजधानी राजगृह से पटना ले आया और यह स्थिति मौर्य और गुप्त काल में भी यथावत रही | सम्राट अशोक ने यहीं से अपना शासन किया | चंद्रगुप्त मौर्य और समुद्रगुप्त जैसे पराक्रमी शासको की यह राजधानी रही | यहीं से चन्द्रगुप्त ने अपने सेना पश्चिमी सीमा पर ग्रीको से लोहा लेने भेजा था और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने शक और हूणों को वापस धकेला था |चन्द्रगुप्त काल में यही पर ग्रीक दूत मेगास्थनीज आ कर रहा था | प्रसिद्ध यात्री फाहियान 3वी. ईसा में और व्हेनसान 7वी. ईसा यहाँ की यात्रा कि और उस काल कि रहन सहन और शासन पद्धति पर विस्तार से लिखा | कौटिल्य जैसे विद्वान यहाँ रहे और अर्थशास्त्र जैसी रचना लिखी | यह नगर प्राचीन काल से ही ज्ञान और विद्वत्ता के स्रोत्र के रूप में प्रसिद्धी पाई | औरंगजेब का पोता शहजादा अजिमुशान को 1703 ई. में पटना का गवर्नर बनाया गया | इसके पहले शेरशाह ने अपनी राजधानी बिहारशरीफ से पटना बनाया | शहजादा अजिमुशान ने पटना को आधुनिक और सुन्दर शहर का रूप देने का प्रयास किया और इसका नाम अजीमाबाद रखा | जनसाधारण में यह पटना नाम से ही प्रचलित रहा और पुराने पटना के दोनों ओर की दीवारों के भग्नावषेश आज भी पटना साहिब के पास देखे जा सकते हैं |

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इतिहासकारों ने सबूतों के विश्लेषण के आधार पर स्थापित किया है कि यह स्थान वैदिक युग के दौरान विदेह के राजा के अधीन था। आर्य काल के दौरान एक अनुसूची जनजाति वामन राजा चेरो ने इस स्थान पर शासन किया। उस समय के शासक मंदिर और अन्य धार्मिक समर्थन करने के पक्षधर थे। यह एक कारण है कि इस क्षेत्र में बहुत सारे मंदिर और अन्य धार्मिक स्थान हैं। जिले के भीतर कुछ महत्वपूर्ण मंदिर और धार्मिक समर्थन इस प्रकार हैं: - थावे के दुर्गा का मंदिर, मांझा का किला, दिघवा दुबौली का वामन गंदे तालाब, सिरिसिया के राजा मलखान का किला, कुचामनोट आदि। गोपालगंज के लोग हमेशा चूने की रोशनी में रहते थे। राष्ट्रीय और सामाजिक कारण जिसमें स्वतंत्रता के लिए संघर्ष, जेपी आंदोलन, महिला शिक्षा के लिए आंदोलन, कर का भुगतान न करने के खिलाफ आंदोलन और बाबू गंगा विष्णु राय और बनकट्टा के बाबू सुंदर लाल के नेतृत्व में 1930 का निषेध शामिल है। 1935 में पंडित भोपाल पांडे ने देश की आजादी के लिए अपनी जान दे दी। गोपालगंज के लोग उन स्वतंत्रता सेनानियों के ऋणी हैं जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपनी जान दी। महाभारत युग के दौरान यह क्षेत्र राजा भूरी सर्व के अधीन था। 13 वीं शताब्दी और 16 वीं शताब्दी के दौरान इस स्थान पर बंगाल के सुल्तान ग्यासुद्दीन अब्बास और बाबर का शासन था।

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